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ललिता पंचमी : शक्ति उपासना का विशेष पर्व

भूमिका

भारतीय संस्कृति में शक्ति उपासना का विशेष महत्व है। नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, चतुर्दशी, दीपावली की रात्रि आदि पर्वों की भाँति ललिता पंचमी भी माँ शक्ति की आराधना का पावन अवसर है। यह पर्व शारदीय नवरात्रि के दौरान पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इसे उपांग ललिता व्रत, उपांग पंचमी या ललिता देवी की पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

भक्तजन इस दिन माँ ललिता की आराधना कर जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और आरोग्य की कामना करते हैं। ऐसा विश्वास है कि ललिता देवी की कृपा से साधक के पाप नष्ट होते हैं और उसे दिव्य ज्ञान, साहस तथा सफलता की प्राप्ति होती है।

 

ललिता पंचमी का महत्व

  1. शक्ति का आवाहन – ललिता पंचमी को नवरात्रि के दौरान शक्ति साधना का विशेष दिन माना गया है।
  2. पाप मोचक तिथि – मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजा करने से जीवन में किए गए पाप मिट जाते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
  3. धन-समृद्धि की प्राप्ति – माता ललिता की कृपा से घर में अन्न, धन और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
  4. आध्यात्मिक शक्ति – यह दिन साधकों को मन की एकाग्रता और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।

ललिता पंचमी की कथा

ललिता पंचमी से जुड़ी एक प्रचलित कथा है।

कहा जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच हुए महासंग्राम में असुरों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। असुरों के बढ़ते आतंक से धरती, आकाश और पाताल सभी व्याकुल हो उठे। तब देवताओं ने माँ शक्ति का आह्वान किया।

माँ दुर्गा के तेज से ललिता देवी प्रकट हुईं। उन्होंने असुरों का संहार कर देवताओं को विजय दिलाई। इसी उपलक्ष्य में पंचमी तिथि को माँ ललिता की आराधना प्रारम्भ हुई।

दूसरी मान्यता के अनुसार, शारदीय नवरात्रि में भगवान राम ने रावण वध से पूर्व देवी दुर्गा की पूजा की थी। उस पूजा के क्रम में पंचमी तिथि को माता ललिता का विशेष पूजन हुआ, जिसके कारण इस दिन को ललिता पंचमी कहा जाता है।

ललिता पंचमी की तिथि समय

  • ललिता पंचमी का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
  • यह शारदीय नवरात्रि के दौरान आता है।
  • इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर पूजा की जाती है।

पूजन विधि

ललिता पंचमी की पूजा अत्यंत सरल और फलदायी मानी जाती है।

  1. स्नान और संकल्प – प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान पर दीपक जलाएँ।
  2. माता की स्थापना – माँ ललिता की मूर्ति या चित्र को लाल वस्त्र पर स्थापित करें।
  3. व्रत संकल्प – हाथ में जल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प करें।
  4. विधिवत पूजा – माता को अक्षत, फूल, फल, नारियल, सिंदूर, चंदन, रोली, मिठाई आदि अर्पित करें।
  5. मंत्र जप – “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ललिताम्बायै नमः” मंत्र का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  6. आरती और भजन – माँ की आरती उतारें और भक्तिगीत गाएँ।

ब्राह्मण भोजन – संभव हो तो इस दिन ब्राह्मण या कन्याओं को भोजन कराएँ और दक्षिणा दें।

ललिता पंचमी के लाभ

  1. कष्ट निवारण – जीवन की बाधाएँ और संकट दूर होते हैं।
  2. आरोग्य प्राप्ति – बीमारियों से मुक्ति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
  3. वैवाहिक सुख – दांपत्य जीवन में मधुरता और स्थिरता आती है।
  4. आर्थिक वृद्धि – कारोबार और धन में प्रगति होती है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति – साधक को ध्यान और साधना में सिद्धि प्राप्त होती है।

धार्मिक मान्यताएँ

  • ललिता पंचमी को सौभाग्य का पर्व कहा गया है। विवाहित स्त्रियाँ इस दिन व्रत करती हैं ताकि उनके पति का जीवन लंबा और स्वस्थ रहे।
  • कुँवारी कन्याएँ इस दिन व्रत रखकर योग्य वर प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं।
  • साधक इसे शक्ति साधना की विशेष रात्रि मानते हैं और देवी के मंत्रों का जप-तप करते हैं।

शास्त्रीय दृष्टिकोण

ललिता पंचमी का उल्लेख कई पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है।

  • देवी भागवत पुराण में इसे पाप नाशिनी तिथि कहा गया है।
  • तांत्रिक साधना में इस दिन देवी के बीज मंत्र का जप विशेष फलदायी होता है।
  • विद्वानों का मानना है कि नवरात्रि की पंचमी तिथि शक्ति उपासना का चरम बिंदु है।

समाज और संस्कृति में महत्व

भारत के विभिन्न प्रांतों में ललिता पंचमी अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है।

  • उत्तर भारत – यहाँ इसे दुर्गा पूजा के अंतर्गत शक्ति आराधना के रूप में मनाया जाता है।
  • मध्य भारत – ग्रामीण क्षेत्रों में ललिता माता के मंदिरों में विशेष भजन-कीर्तन होते हैं।
  • गुजरात महाराष्ट्र – यहाँ भक्तजन शक्ति मंदिरों में जाकर विशेष दर्शन करते हैं और गरबा-डांडिया के आयोजन भी पंचमी तक चलते हैं।

ललिता पंचमी नवरात्रि के दौरान आने वाला एक अत्यंत पावन और फलदायी पर्व है। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि जीवन के अंधकार को दूर करने के लिए शक्ति का स्मरण और साधना आवश्यक है

माँ ललिता की कृपा से भक्तजन को सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के उपवास और पूजा के बीच पंचमी का यह दिन साधना को और अधिक शक्तिशाली बनाता है।

जो भी श्रद्धालु पूर्ण भक्ति और आस्था से ललिता पंचमी का व्रत और पूजन करते हैं, उनके जीवन से दुःख, संकट और बाधाएँ समाप्त होती हैं तथा जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और सफलता का उदय होता है।

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