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वेदादि-शास्त्रों में कुल ८ गायत्री श्री गणेशनारायण भगवान् की प्राप्त होती हैं

१ – श्री कृष्ण यजुर्वेद में :-

“तत्कराटाय विद्महे , हस्तिमुखाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।”

 

२ – तैत्तिरीय आरण्यक व श्री लिंग पुराण में :-

“तत्पुरुषाय विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि।तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।”

३ – श्री गणपत्यथर्वशीर्ष में :-

“एकदन्ताय विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।”

 

४ और ५ दोनों – श्री अग्निपुराण में :-

४ – “लम्बोदराय विद्महे , महोदराय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।”

५ – “महोल्काय विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।”

 

६ – श्री गरुड़ पुराण में :-

“महाकर्णाय विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।”

 

७- श्री भविष्य पुराण में :-

       “महाकर्णाय विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।”

 

८ –  श्री भविष्य पुराण में ही :-

“महागणपतये विद्महे , वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।”

 

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