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श्रीचंद्र नवमी : भक्ति, सेवा और समर्पण का पर्व

भारत में प्रत्येक पर्व का कोई न कोई आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रहा है। हिंदू धर्म में अनेक व्रत-पर्व हैं, जो हमें धर्म, सेवा और मानवीय मूल्यों की शिक्षा देते हैं। इन्हीं में से एक है श्रीचंद्र नवमी। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

श्रीचंद्र जी कौन थे?

धार्मिक मान्यताओं और लोककथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब से श्रीचंद्र जी का संबंध है। साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था और उन्होंने कठोर तपस्या कर सूर्यदेव की आराधना की। सूर्यदेव की कृपा से उन्हें रोगमुक्ति मिली।

इसी वंश परंपरा में जन्मे श्रीचंद्र जी तेजस्वी, करुणामयी और लोककल्याणकारी पुरुष माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन में सदैव सेवा, भक्ति और मानवता का संदेश दिया। श्रीचंद्र जी के नाम से कई भजन, लोककथाएँ और उत्सव आज भी जीवित हैं।

 

श्रीचंद्र नवमी कब मनाई जाती है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीचंद्र नवमी मनाई जाती है। यह तिथि जन्माष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) के कुछ दिन बाद आती है।

सन 2025 में यह पर्व 5 सितंबर को मनाया जाएगा।

श्रीचंद्र नवमी की पूजा-विधि

  1. प्रातःकाल स्नान – इस दिन प्रातःकाल स्नान कर घर व पूजा-स्थान को शुद्ध किया जाता है।
  2. व्रत का पालन – श्रद्धालु व्रत रखते हैं और दिनभर फलाहार या सात्त्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
  3. पूजन और भक्ति – श्रीचंद्र जी की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित कर फूल, धूप, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
  4. भजन-कीर्तन – श्रीचंद्र जी के भजन, आरती और कथा का आयोजन होता है।
  5. दान-पुण्य – गरीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्नदान करने की परंपरा है।
  6. सामूहिक आयोजन – गाँवों और कस्बों में मेले, झाँकियाँ और शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।

श्रीचंद्र नवमी की कथाएँ

कथा 1 : रोग-निवारण की मान्यता

मान्यता है कि श्रीचंद्र जी का संबंध कुष्ठ रोग से मुक्ति से जुड़ा है। इसलिए इस दिन व्रत और पूजा करने से चर्म रोगों से राहत और स्वास्थ्य लाभ होता है।

कथा 2 : सेवा का संदेश

एक अन्य कथा के अनुसार, श्रीचंद्र जी ने अपने जीवन में कहा कि ईश्वर की सच्ची पूजा सेवा में है। उन्होंने असहाय, रोगी और निर्धन लोगों की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया।

श्रीचंद्र जी के उपदेश

श्रीचंद्र जी के उपदेश आज भी समाज को मार्गदर्शन करते हैं—

  1. भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सेवा भी है।
  2. धन और यश से बड़ा धर्म है मानवता।
  3. सच्चा संत वही है जो दूसरों के दुख हरने का प्रयास करे।

अहंकार और लोभ से दूर रहकर जीवन को सरल बनाना चाहिए।

समाज में महत्व

  • सामाजिक एकता : श्रीचंद्र नवमी समाज में भाईचारे और एकता को बढ़ावा देती है।
  • दान-पुण्य : इस दिन दान करने से गरीबों की मदद और समाज कल्याण का भाव जागता है।
  • आध्यात्मिक जागरण : लोग संयम, सदाचार और भक्ति का पालन करने का संकल्प लेते हैं।

लोकजीवन में श्रीचंद्र नवमी

ग्रामीण अंचलों में श्रीचंद्र नवमी का उत्सव बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

  • भजन-कीर्तन और मेले : मंदिरों में भजन-कीर्तन होते हैं, मेलों का आयोजन होता है।
  • विशेष पकवान : घरों में सात्त्विक व्यंजन और प्रसाद बनाए जाते हैं।
  • झाँकियाँ और शोभायात्राएँ : श्रीचंद्र जी की महिमा गाती हुई झाँकियाँ निकलती हैं।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य

आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में श्रीचंद्र नवमी का महत्व और भी बढ़ गया है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि—

  • केवल भौतिक सुख ही जीवन का उद्देश्य नहीं है, बल्कि मानवता और सेवा भी आवश्यक है।
  • दान-पुण्य से समाज में सहयोग और करुणा की भावना मजबूत होती है।
  • युवा पीढ़ी के लिए यह पर्व आदर्श और संस्कारों का संदेश लेकर आता है।
  • इस दिन पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना भी सार्थक है।

 

श्रीचंद्र नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह भक्ति, सेवा और मानवता का संदेश देने वाला उत्सव है। श्रीचंद्र जी ने अपने जीवन से हमें यह सिखाया कि पूजा का वास्तविक स्वरूप ज़रूरतमंदों की मदद और समाज सेवा में है।

आज जब समाज में स्वार्थ और भौतिकवाद बढ़ रहा है, तब श्रीचंद्र नवमी का संदेश हमें सही राह दिखाता है। यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि हम धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाएँ।

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