भारतीय सनातन धर्म में चन्द्रमा को मन और भावनाओं का अधिपति माना गया है। चन्द्रमा के दर्शन से व्यक्ति के भीतर शीतलता, शांति और आनंद का संचार होता है। परंतु कुछ विशेष अवसरों पर चन्द्र दर्शन के साथ कुछ अशुभ घटनाएँ भी जुड़ी मानी जाती हैं। विशेषकर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन चन्द्र दर्शन से संबंधित कथा का उल्लेख मिलता है, जब भगवान श्रीकृष्ण पर अन्यायपूर्ण चोरी का दोष लगा और उन्हें श्राप का सामना करना पड़ा। इसी प्रसंग से जुड़ा है – चन्द्रदर्शन परिहार मंत्र, चिंतामणि मयांत कथा और कृष्ण-गणेश जी की कथा।
धार्मिक मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति को मिथ्या कलंक का सामना करना पड़ सकता है। कहा जाता है कि जो भी इस दिन चन्द्रमा को देख लेता है, उस पर झूठे आरोप लग सकते हैं। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है, जब उन पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगाया गया था।
इस दोष से बचने के लिए ऋषियों और पुराणों में परिहार मंत्र का उल्लेख मिलता है। यदि किसी से भूलवश गणेश चतुर्थी पर चन्द्र दर्शन हो जाए, तो यह मंत्र जपने से दोष समाप्त हो जाता है –
🔱 चन्द्रदर्शन परिहार मंत्र 🔱
“सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।।”
इस मंत्र का उच्चारण करने से मिथ्या दोष समाप्त होता है और व्यक्ति पर लगने वाले झूठे आरोप शांति को प्राप्त होते हैं।
इस कथा को चिंतामणि मयांत कथा भी कहा जाता है। इसका संबंध स्यमंतक मणि से है, जो एक दिव्य रत्न था और जिस पर अनेक विवाद हुए।
कथा का प्रसंग
सूर्यदेव के भक्त सत्यजित के पास स्यमंतक मणि थी। यह रत्न प्रतिदिन प्रचुर मात्रा में सोना उत्पन्न करता था और जिस घर में रहता था, वहाँ समृद्धि और सुख की वृद्धि होती थी। एक बार यह रत्न प्रसेन के पास चला गया। प्रसेन जब शिकार के लिए गया तो सिंह ने उसकी हत्या कर दी और मणि को ले गया। बाद में जाम्बवान ने उस सिंह को मारकर मणि अपने पास रख ली।
इस बीच, नगरवासियों में यह अफवाह फैल गई कि यह रत्न श्रीकृष्ण ने ले लिया है। इस कारण उन पर चोरी का झूठा आरोप लगा। कृष्ण ने जब यह सुना तो वे अत्यंत दुखी हुए और सत्य की खोज के लिए निकल पड़े।
अंततः उन्होंने जाम्बवान से युद्ध किया। 28 दिनों तक युद्ध चलने के बाद जब जाम्बवान को ज्ञात हुआ कि वे तो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से लड़ रहे हैं, तब उन्होंने मणि कृष्ण को सौंप दी और अपनी कन्या जाम्बवती का विवाह भी कृष्ण से कर दिया।
कथा का संदेश
इस कथा को चिंतामणि मयांत कथा कहा जाता है क्योंकि यह केवल एक रत्न की खोज नहीं थी, बल्कि कृष्ण के जीवन का वह प्रसंग था जिसने उन्हें समाज में निर्दोष सिद्ध किया और सत्य की विजय कराई। साथ ही इसमें गणेश जी की कथा भी जुड़ी है, क्योंकि यह पूरा प्रसंग गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन से आरंभ हुआ था।
गणेश जी से जुड़ी मान्यता है कि एक बार भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर बैठे थे। उस समय चन्द्रदेव ने उनका उपहास किया और उन पर हँस पड़े। गणेश जी क्रोधित हो गए और चन्द्रदेव को श्राप दे दिया –
“आज के दिन जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, उसे झूठे कलंक और दोष का सामना करना पड़ेगा।”
इसी श्राप के प्रभाव से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन अशुभ माना गया। यही कारण था कि श्रीकृष्ण को भी स्यमंतक मणि की चोरी का झूठा आरोप सहना पड़ा।
परिहार और मंत्र
जब श्रीकृष्ण को ज्ञात हुआ कि यह दोष गणेश जी के श्राप के कारण हुआ है, तब उन्होंने गणेश जी की स्तुति की। गणेश जी प्रसन्न हुए और कहा कि –
“जो भी मेरे इस परिहार मंत्र का जप करेगा, उस पर लगने वाले मिथ्या दोष का नाश होगा।”
वह मंत्र वही है जो ऊपर दिया गया है –
“सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।।“
चन्द्रदर्शन परिहार मंत्र, चिंतामणि मयांत कथा और श्रीकृष्ण-गणेश जी की कथा केवल पुराणों की कहानियाँ भर नहीं हैं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले दिव्य संदेश हैं।
इस प्रकार यह कथा और मंत्र न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी हमें धैर्य, सत्य और आस्था की राह दिखाते हैं।
सनातन धर्म में गूढ़ ज्ञान और रहस्यों को कथा कहानियों के रूप में समाहित कर दिया है। चंद्र देव के द्वारा गणेश जी का उपहास करने की पौराणिक कथा तो आप जानते ही हैं, पर मैं आज आपको इसके पीछे का गूढ़ रहस्य बताता हूँ।
“चंद्र” मन का कारक ग्रह है और गणेश जी बुद्धि के देवता हैं, प्रत्येक व्यक्ति का मन चंचल घोड़े की तरह यहाँ वहाँ भटकता रहता है, अतः जब तक इस “मन” रूपी घोड़े पर “बुद्धि” रूपी लगाम नहीं लगाई जाती है, तब जीवन में कलंक लगना निश्चित है।
उदाहरण के लिए किसी के मन में किसी वस्तु को चुराने का विचार उठता है, तब बुद्धि उसे समझाती है कि चोरी करना पाप है, और पता लगने पर बदनामी भी होगी और जेल भी होगी।
अतः बुद्धि रूपी लगाम से मन को वश में करके सही दिशा में लगाया जाता है। जो मन पर बुद्धि की लगाम नहीं लगाते हैं उनकी जग हँसाई होती है, कलंक लगता है, जीवन में अनेक संकट पैदा हो जाते हैं।
“मन” को केवल और केवल मात्र बुद्धि से ही वश में किया जा सकता है, अन्यथा यह मन किसी से कुछ भी करवाता सकता है। संसार में जितने भी विचित्र कृत्य आप देखते हैं वह सब बिगड़े हुए “मन” का परिणाम है।
गणेश जी कि चंद्रदेव से कोई शत्रुता नहीं है, इसके पीछे का गूढ़ विज्ञान यही है।