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हरतालिका तीज व्रत : अखण्ड सौभाग्य का पर्व

भारत एक उत्सवप्रधान देश है। यहाँ प्रत्येक पर्व केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा नहीं होता, बल्कि समाज, संस्कृति और परिवार की एकता का भी प्रतीक होता है। हरतालिका तीज व्रत ऐसा ही एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत, मध्य भारत और राजस्थान में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इसे सुहागिन महिलाओं का महापर्व भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत पति की दीर्घायु और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

हरतालिका तीज का अर्थ और नाम की उत्पत्ति

हरतालिका’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से बना है –

  • हरित (हरण करना यानी ले जाना)
  • आलिका (सखी या सहेली)

पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव ने माता पार्वती का विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था और हिमालयराज ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था, तब माता पार्वती की सखियों ने उन्हें विवाह स्थल से ‘हर’ लिया और एक गुफा में ले जाकर उनका कठोर तप करवाया। इसी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसलिए इस पर्व का नाम हरतालिका पड़ा।

 

हरतालिका तीज का महत्व

  1. वैवाहिक जीवन में सुख-सौभाग्य – यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु और दाम्पत्य जीवन की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं।
  2. अविवाहित कन्याएँ भी करती हैं – जो कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति की इच्छा रखती हैं, वे भी इस व्रत को करती हैं। कहा जाता है कि इस दिन किया गया संकल्प उन्हें मनचाहा पति दिलाता है।
  3. आध्यात्मिक महत्व – यह व्रत स्त्रियों को तप, संयम और समर्पण की शक्ति सिखाता है। बिना जल और अन्न के पूरे दिन का व्रत साधना के समान है।
  4. सामाजिक महत्व – हरतालिका तीज स्त्रियों के बीच मेल-जोल, भक्ति गीत, लोकनृत्य और श्रृंगार के अवसर प्रदान करता है, जिससे समाज में आपसी सौहार्द और अपनापन बढ़ता है।

हरतालिका तीज की कथा

पुराणों में उल्लेख है कि माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हिमालय पर्वत पर कठोर तपस्या की। वे दिन-रात केवल शिव नाम का जाप करती थीं।

जब हिमवान (पार्वती के पिता) ने उनका विवाह विष्णु भगवान से करने का निर्णय लिया, तो उनकी सखियाँ पार्वती जी को हर ले गईं और घने जंगल में छिपा दिया। वहाँ माता पार्वती ने रेतीली भूमि पर शिवलिंग का निर्माण कर निष्ठा और समर्पण से पूजा की।

उनकी इस साधना और अटल भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यही कारण है कि यह व्रत अटूट दाम्पत्य और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति का प्रतीक बन गया।

व्रत और पूजा विधि

  1. व्रत की तिथि – हरतालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
  2. व्रत का स्वरूप – यह व्रत निर्जला उपवास के रूप में होता है। यानी स्त्रियाँ दिनभर जल और अन्न का सेवन नहीं करतीं।
  3. पूजा की तैयारी
    • एक मिट्टी या बालू से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
    • पूजा स्थल को स्वच्छ करके रंगोली और दीपक से सजाया जाता है।
    • महिलाएँ हरे वस्त्र, सोलह श्रृंगार, और मेहंदी लगाती हैं।
  4. पूजा विधान
    • सबसे पहले गणेशजी की पूजा होती है।
    • फिर शिव-पार्वती की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर वस्त्र, फूल, बेलपत्र, धतूरा, फल और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।
    • कथा सुनाई जाती है और महिलाएँ “हरतालिका तीज व्रत कथा” का श्रवण करती हैं।
    • रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।

व्रत का समापन – अगले दिन प्रातः ब्राह्मण या किसी सुहागिन महिला को दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।

हरतालिका तीज और श्रृंगार

इस पर्व पर स्त्रियाँ विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है – बिंदी, सिंदूर, मांगटीका, चूड़ियाँ, पायल, बिछिया, महावर, गजरा आदि। यह श्रृंगार केवल सौंदर्य बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि सौभाग्य और मंगलकामना का प्रतीक माना जाता है।

लोक परंपराएँ और गीत

हरतालिका तीज के अवसर पर महिलाओं के बीच पारंपरिक गीत और लोकनृत्य का विशेष आयोजन होता है। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में महिलाएँ पेड़-पौधों के नीचे झूला झूलते हुए भजन गाती हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक उत्साह जगाता है बल्कि जीवन में उल्लास और आनंद का संदेश भी देता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

यदि इसे वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो हरतालिका तीज का उपवास महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।

  • निर्जला उपवास शरीर को डिटॉक्स करता है।
  • मानसिक संयम और ध्यान शक्ति बढ़ती है।
  • सामूहिक पूजा और भजन-कीर्तन से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

आधुनिक समय में हरतालिका तीज

आज के समय में शहरी जीवन की व्यस्तता और बदलती जीवनशैली के बावजूद हरतालिका तीज का महत्व कम नहीं हुआ है।

  • महानगरों में महिलाएँ क्लब, मंदिर या सामुदायिक भवनों में सामूहिक रूप से व्रत और पूजा करती हैं।
  • सोशल मीडिया पर भी इस व्रत से जुड़े गीत, फोटो और शुभकामनाएँ साझा की जाती हैं।
  • कई महिलाएँ कठोर निर्जला व्रत न रखकर केवल फलाहार करती हैं, फिर भी भक्ति और भावना वही रहती है।

हरतालिका तीज का सांस्कृतिक संदेश

यह पर्व हमें यह सिखाता है कि –

  1. सच्ची आस्था और दृढ़ निश्चय से असंभव भी संभव हो जाता है।
  2. पति-पत्नी का रिश्ता केवल सांसारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बंधन भी है।
  3. स्त्रियाँ परिवार और समाज की धुरी हैं, और उनके तप व त्याग से ही परिवार की नींव मजबूत होती है।

निष्कर्ष

हरतालिका तीज केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, त्याग, भक्ति और प्रेम का अद्वितीय प्रतीक है। यह पर्व हमें पार्वती जी की भक्ति और दृढ़ता की याद दिलाता है और सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, विश्वास और संकल्प से मनचाहा फल अवश्य मिलता है।

आज की पीढ़ी के लिए यह पर्व एक संदेश है – परंपराओं को केवल रीति-रिवाज न मानकर उनके पीछे छिपे गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ को समझें और आगे बढ़ाएँ।

 

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