भारत एक उत्सवप्रधान देश है। यहाँ प्रत्येक पर्व केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा नहीं होता, बल्कि समाज, संस्कृति और परिवार की एकता का भी प्रतीक होता है। हरतालिका तीज व्रत ऐसा ही एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत, मध्य भारत और राजस्थान में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इसे सुहागिन महिलाओं का महापर्व भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत पति की दीर्घायु और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
हरतालिका तीज का अर्थ और नाम की उत्पत्ति
‘हरतालिका’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से बना है –
पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव ने माता पार्वती का विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था और हिमालयराज ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था, तब माता पार्वती की सखियों ने उन्हें विवाह स्थल से ‘हर’ लिया और एक गुफा में ले जाकर उनका कठोर तप करवाया। इसी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसलिए इस पर्व का नाम हरतालिका पड़ा।
हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज की कथा
पुराणों में उल्लेख है कि माँ पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हिमालय पर्वत पर कठोर तपस्या की। वे दिन-रात केवल शिव नाम का जाप करती थीं।
जब हिमवान (पार्वती के पिता) ने उनका विवाह विष्णु भगवान से करने का निर्णय लिया, तो उनकी सखियाँ पार्वती जी को हर ले गईं और घने जंगल में छिपा दिया। वहाँ माता पार्वती ने रेतीली भूमि पर शिवलिंग का निर्माण कर निष्ठा और समर्पण से पूजा की।
उनकी इस साधना और अटल भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यही कारण है कि यह व्रत अटूट दाम्पत्य और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति का प्रतीक बन गया।
व्रत और पूजा विधि
व्रत का समापन – अगले दिन प्रातः ब्राह्मण या किसी सुहागिन महिला को दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।
हरतालिका तीज और श्रृंगार
इस पर्व पर स्त्रियाँ विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है – बिंदी, सिंदूर, मांगटीका, चूड़ियाँ, पायल, बिछिया, महावर, गजरा आदि। यह श्रृंगार केवल सौंदर्य बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि सौभाग्य और मंगलकामना का प्रतीक माना जाता है।
लोक परंपराएँ और गीत
हरतालिका तीज के अवसर पर महिलाओं के बीच पारंपरिक गीत और लोकनृत्य का विशेष आयोजन होता है। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में महिलाएँ पेड़-पौधों के नीचे झूला झूलते हुए भजन गाती हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक उत्साह जगाता है बल्कि जीवन में उल्लास और आनंद का संदेश भी देता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
यदि इसे वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो हरतालिका तीज का उपवास महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।
आधुनिक समय में हरतालिका तीज
आज के समय में शहरी जीवन की व्यस्तता और बदलती जीवनशैली के बावजूद हरतालिका तीज का महत्व कम नहीं हुआ है।
हरतालिका तीज का सांस्कृतिक संदेश
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि –
निष्कर्ष
हरतालिका तीज केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, त्याग, भक्ति और प्रेम का अद्वितीय प्रतीक है। यह पर्व हमें पार्वती जी की भक्ति और दृढ़ता की याद दिलाता है और सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, विश्वास और संकल्प से मनचाहा फल अवश्य मिलता है।
आज की पीढ़ी के लिए यह पर्व एक संदेश है – परंपराओं को केवल रीति-रिवाज न मानकर उनके पीछे छिपे गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ को समझें और आगे बढ़ाएँ।