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सिंह संक्रांति : महत्व, पूजन विधि और लोक परंपराएँ

भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहाँ वर्ष भर विभिन्न पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इन पर्वों का संबंध केवल धार्मिक आस्था से ही नहीं, बल्कि प्रकृति, ऋतुओं और कृषि से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है सिंह संक्रांति। यह पर्व सूर्य देव के बारह संक्रांति पर्वों में से एक है। जब सूर्य देव अपनी गति बदलते हुए कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, तो इस अवसर को सिंह संक्रांति कहा जाता है। सामान्यत: यह तिथि प्रत्येक वर्ष 17 अगस्त के आसपास पड़ती है।

 

सिंह संक्रांति का धार्मिक महत्व

हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। कुल बारह संक्रांति होती हैं, जिनमें से मकर संक्रांति और सिंह संक्रांति विशेष प्रसिद्ध मानी जाती हैं।

सिंह संक्रांति का सीधा संबंध सूर्योपासना से है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि सूर्य देव के प्रभाव से ही जीवन में ऊर्जा, तेज, आत्मविश्वास और सफलता प्राप्त होती है।

शास्त्रों के अनुसार सिंह संक्रांति पर स्नान, दान और जप-तप करने का फल अन्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक प्राप्त होता है। यह समय पुण्य का संचित करने वाला और पापों को क्षीण करने वाला माना गया है।

पौराणिक संदर्भ

हिन्दू धर्मग्रंथों में सूर्य देव को देवताओं की आत्मा कहा गया है। आदित्य हृदय स्तोत्र में भी सूर्य देव की महिमा का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम का युद्ध रावण से हुआ, तब महर्षि अगस्त्य ने उन्हें आदित्य हृदय स्तोत्र का उपदेश दिया था। उसी के प्रभाव से श्रीराम को विजय प्राप्त हुई।

सिंह संक्रांति पर सूर्य देव की उपासना करने से मनुष्य को आत्मबल मिलता है और जीवन में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं।

ज्योतिषीय दृष्टि से महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश करना अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना गया है। सिंह राशि स्वयं सूर्य की ही राशि है। इसलिए जब सूर्य यहाँ स्थित होते हैं, तो यह स्थिति और भी बलवान मानी जाती है।

इस दौरान व्यक्ति में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और कार्यक्षमता का विकास होता है। राजनीति, प्रशासन, व्यवसाय और सरकारी क्षेत्रों से जुड़े लोगों के लिए यह संक्रांति अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।

सिंह संक्रांति पर पूजन विधि

इस दिन व्रती प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देव की उपासना करते हैं। पूजा की सामान्य विधि इस प्रकार है –

  1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य के लिए तांबे के लोटे में जल लें, उसमें लाल पुष्प, अक्षत और थोड़ी गुड़ मिलाएँ।
  3. सूर्य मंत्र – घृणि सूर्याय नमः” का जाप करें।
  4. भगवान सूर्य को लाल पुष्प, गुड़, गेंहू, चावल आदि अर्पित करें।
  5. घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और सूर्य देव की कथा का श्रवण करें।

संध्या काल में भी सूर्यास्त के समय अर्घ्य देकर प्रार्थना करनी चाहिए।

सिंह संक्रांति से जुड़े व्रत और दान

सिंह संक्रांति पर दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान अनंत गुना फलदायी होता है।

  • गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, गुड़, तिल और घी दान करना चाहिए।
  • गौसेवा करना, पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना और पीपल के पेड़ की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है।
  • इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु एक समय फलाहार करते हैं और दिनभर भगवान सूर्य का स्मरण करते हैं।

सिंह संक्रांति और लोक परंपराएँ

भारत के विभिन्न राज्यों में इस पर्व को अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है –

  • उत्तर भारत में इसे सूर्योपासना और दान का पर्व माना जाता है। गाँवों में लोग नदी या तालाब पर स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
  • दक्षिण भारत में इसे “सिंहा संक्रांति” कहा जाता है और देवी-देवताओं के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
  • ओडिशा में इसे “खुसी संक्रांति” के रूप में मनाया जाता है, जहाँ खासतौर पर पकवान और दान का आयोजन होता है।
  • आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह पर्व कृषि से जुड़ा हुआ है। किसान इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करते हैं और सूर्य देव को अपनी उपज का प्रथम अंश अर्पित करते हैं।

स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व

सिंह संक्रांति केवल धार्मिक या ज्योतिषीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

  • वर्षा ऋतु समाप्त होकर धीरे-धीरे शरद ऋतु का आगमन होता है। यह ऋतु परिवर्तन का समय है, जब शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता होती है।
  • सूर्य की उपासना से शरीर में विटामिन डी की पूर्ति होती है, जो हड्डियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आवश्यक है।
  • मानसिक रूप से भी सूर्य साधना करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और तनाव दूर होता है।

सिंह संक्रांति की विशेष मान्यताएँ

  1. इस दिन सूर्य देव की कृपा से जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है।
  2. ग्रह दोषों से पीड़ित लोगों को विशेष लाभ प्राप्त होता है।
  3. यह दिन नए कार्यों की शुरुआत करने के लिए शुभ माना जाता है।
  4. जिन व्यक्तियों को नौकरी, व्यवसाय या सामाजिक जीवन में बाधाएँ आ रही हों, उन्हें इस दिन सूर्य देव की आराधना अवश्य करनी चाहिए।

निष्कर्ष

सिंह संक्रांति केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह आस्था, ज्योतिष, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता का संगम है। यह हमें सूर्य देव की महत्ता का बोध कराता है और प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की प्रेरणा देता है।

इस दिन किया गया दान-पुण्य, साधना और उपासना न केवल वर्तमान जीवन में सुख-शांति प्रदान करती है, बल्कि भविष्य के लिए भी मार्ग प्रशस्त करती है।

अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस पावन अवसर पर स्नान, दान और सूर्योपासना अवश्य करनी चाहिए, ताकि जीवन में सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहे |

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