परिचय
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः गौ पूजन और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। भारत के कई हिस्सों में इसे “गोपाष्टमी” या “गौरी-गणेश पूजन” से जोड़ा जाता है, लेकिन बहुला चतुर्थी का विशिष्ट महत्व गौ माता की महिमा और उनके संरक्षण से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और गौ पूजन करने से संतान सुख, परिवार में समृद्धि, और पापों का क्षय होता है।
बहुला चतुर्थी का महत्व
बहुला चतुर्थी केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदू संस्कृति में गाय को “माता” का दर्जा दिया गया है। वेदों में इसे ‘अघ्न्या’ कहा गया है, अर्थात जिसे कभी भी मारा न जाए। बहुला चतुर्थी व्रत का उद्देश्य गौ माता के महत्व को जनमानस में स्थापित करना और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है।
इस व्रत का महत्व निम्न कारणों से और भी बढ़ जाता है—
बहुला चतुर्थी की पौराणिक कथा
बहुला चतुर्थी से जुड़ी कथा भगवान श्रीकृष्ण के समय की मानी जाती है।
कथा –
कहते हैं कि द्वापर युग में एक गाय थी जिसका नाम बहुला था। वह अत्यंत धर्मनिष्ठ और अपने मालिक के प्रति वफादार थी। एक दिन बहुला जंगल में घास चरने गई। तभी रास्ते में एक शेर ने उसे पकड़ लिया। शेर भूख से व्याकुल था और उसे खाने की इच्छा व्यक्त की।
बहुला ने विनम्रता से शेर से कहा –
“हे वनराज! मेरा बछड़ा घर पर मेरा इंतजार कर रहा है। कृपया मुझे पहले बछड़े को दूध पिलाने दें, फिर मैं स्वयं लौटकर आपके भोजन हेतु आ जाऊँगी।”
शेर ने सोचा कि यह असंभव है कि कोई अपने मृत्यु स्थान पर स्वयं लौटकर आए। लेकिन बहुला की आंखों में सत्य और धर्म की चमक देखकर उसने उसे जाने दिया।
बहुला घर लौटी, अपने बछड़े को प्यार से दूध पिलाया और फिर वचन निभाने के लिए वापस शेर के पास आ गई।
शेर ने उसकी सच्चाई देखकर कहा –
“हे गौ माता! मैं आपका मांस नहीं खाऊँगा। आपने अपने धर्म का पालन किया है, अतः मैं भी अपने धर्म का पालन करते हुए आपको आशीर्वाद देता हूँ कि आज के दिन आपका पूजन और व्रत करने वाला सदैव सुखी और समृद्ध होगा।”
यह शेर वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण का रूप था, जिन्होंने बहुला की सत्यनिष्ठा की परीक्षा ली थी।
पूजन विधि
बहुला चतुर्थी का व्रत प्रातःकाल स्नान करके, संकल्प लेकर और दिनभर उपवास रखकर किया जाता है। इसका मुख्य केंद्र गौ पूजन है।
पूजन की चरणबद्ध विधि इस प्रकार है:
व्रत नियम
बहुला चतुर्थी का धार्मिक महत्व
धर्मशास्त्रों में कहा गया है –
“गावो विश्वस्य मातरः” – अर्थात गाय सम्पूर्ण जगत की माता है।
गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है। बहुला चतुर्थी के दिन गाय की सेवा करना सभी देवी-देवताओं की सेवा के समान है।
इस व्रत का विशेष महत्व यह भी है कि यह सत्य, धर्म और वचनबद्धता के पालन का संदेश देता है। बहुला की कथा हमें सिखाती है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी ईश्वर की कृपा पाई जा सकती है।
सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश
बहुला चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन जैसा है। इस दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि—
गाय केवल दूध ही नहीं देती, बल्कि उनका गोबर और गोमूत्र भी खेती, चिकित्सा और स्वच्छता के लिए उपयोगी होता है। इस प्रकार, गाय का संरक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करता है।
बहुला चतुर्थी से जुड़ी अन्य मान्यताएं
उपसंहार
बहुला चतुर्थी व्रत केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह हमें पशु प्रेम, पर्यावरण संरक्षण और सत्यनिष्ठा की प्रेरणा देता है। बहुला गाय की तरह हमें भी अपने वचनों और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
इस दिन गाय की सेवा, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और सच्चे मन से व्रत करने से न केवल भौतिक सुख-संपत्ति, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त होती है। बहुला चतुर्थी हमें यह याद दिलाती है कि धरती पर सभी जीव-जंतु हमारे परिवार का हिस्सा हैं, और उनकी सेवा ही सच्ची ईश्वर भक्ति है।