पारद (पारा) को रसराज कहा जाता है। पारद से बने शिवलिंग की पूजा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का ही रूप है इसलिए इसकी पूजा विधि-विधान से करने से कई गुना फल प्राप्त होता है तथा हर मनोकामना पूरी होती है।
घर में पारद शिवलिंग सौभाग्य, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक सौभाग्यशाली है। दुकान, ऑफिस व फैक्टरी में व्यापार को बढाऩे के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है। शिवलिंग का मात्र दर्शन ही सौभाग्यशाली होता है। इसके लिए किसी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्कता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन विधि की जानी चाहिए।
पूजन विधि-
सर्वप्रथम शिवलिंग को सफेद कपड़े पर आसन पर रखें।
स्वयं पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए।
अपने आसपास जल, गंगाजल, रोली, मोली, चावल, दूध और हल्दी, चन्दन रख लें।
सबसे पहले पारद शिवलिंग के दाहिनी तरफ दीपक जला कर रखें।
थोडा सा जल हाथ में लेकर तीन बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करके पी लें।
प्रथम बार- ॐ मुत्युभजाय नम:।
दूसरी बार- ॐ नीलकण्ठाय: नम:।
तीसरी बार- ॐ रूद्राय नम:
चौथी बार- ॐशिवाय नम:।
हाथ में फूल और चावल लेकर शिवजी का ध्यान करें और मन में ‘ॐ नम: शिवाय’ का ५ बार स्मरण करें और चावल और फूल को शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ‘ॐ नम: शिवाय’ का निरन्तर उच्चारण करते रहे। फिर हाथ में चावल और पुष्प लेकर ‘ॐ पार्वत्यै नम:’ मंत्र का उच्चारण कर माता पार्वती का ध्यान कर चावल पारा शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ‘ॐ नम: शिवाय’ का निरन्तर उच्चारण करें। फिर मोली को और इसके बाद बनेऊ को पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके पश्चात हल्दी और चन्दन का तिलक लगा दे। चावल अर्पण करे इसके बाद पुष्प चढ़ा दें। मीठे का भोग लगा दे। भांग, धतूरा और बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ा दें।
फिर अन्तिम में शिव की आरती करे और प्रसाद आदि ले लें।
जो व्यक्ति इस प्रकार से पारद शिवलिंग का पूजन करता है इसे शिव की कृपा से सुख समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
लाभ-
इसे घर में स्थापित करने से भी कई लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं-
पारद शिवलिंग सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों को काट देता है।
पारद शिवलिंग जहां स्थापित होता है उसके १०० फ़ीट के दायरे में उसका प्रभाव होता है।
इस प्रभाव से परिवार में शांति और स्वास्थ्य प्राप्ति होती है।
पारद शिवलिंग शुद्ध होना चाहिये, हस्त निर्मित होना चाहिये, स्वर्ण ग्रास से युक्त होना चाहिये, उस पर फ़णयुक्त नाग होना चाहिये और कम से कम सवा किलो का होना चाहिये।
यदि बहुत प्रचण्ड तान्त्रिक प्रयोग या अकाल मृत्यु या वाहन दुर्घटना योग हो तो ऐसा शुद्ध पारद शिवलिंग उसे अपने ऊपर ले लेता है। ऐसी स्थिति में यह अपने आप टूट जाता है, और साधक की रक्षा करता है।
पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है। विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये।
पारद शिवलिंग को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।
पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। इसलिए इसे घर में स्थापित कर प्रतिदिन पूजन करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
यदि किसी को पितृ दोष हो तो उसे प्रतिदिन पारद शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृ दोष समाप्त हो जाता है।
अगर घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो उसे पारद शिवलिंग पर अभिषेक किया हुआ पानी पिलाने से वह ठीक होने लगता है।
पारद शिवलिंग की साधना से विवाह बाधा भी दूर होती है।
शुद्ध पारद शिवलिंग की पहचान-
पारद शिवलिंग पारा अर्थात Mercury का बना होता है। आज कल बाजार में पारद शिवलिंग बने बनाए मिलते है। ये सर्वथा अशुद्ध एवं किन्ही विशेष परिस्थितियों में हानि कारक भी होते है। जैसे सुहागा एवं ज़स्ता के संयोग से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है। इसी प्रकार एल्युमिनियम से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है, किन्तु उपरोक्त दोनों ही शिवलिंग घर में या पूजा के लिए नहीं रखने चाहिए। इससे रक्त रोग, श्वास रोग एवं मानसिक विकृति उत्पन्न होती है। अतः ऐसे शिवलिंग या इन धातुओ से बने कोई भी देव प्रतिमा घर या पूजा के स्थान में नहीं रखने चाहिए।
पारद शिव लिंग का निर्माण क्रमशः तीन मुख्य धातुओ के रासायनिक संयोग से होता है। अथर्वन महाभाष्य में लिखा है कि,
द्रत्यान्शु परिपाकेनलाब्धो यत त्रीतियाँशतः. पारदम तत्द्वाविन्शत कज्जलमभिमज्जयेत. उत्प्लावितम जरायोगम क्वाथाना दृष्टोचक्षुषः तदेव पारदम शिवलिंगम पूजार्थं प्रति गृह्यताम।
अर्थात अपनी सामर्थ्य के अनुसार कम से कम कज्जल का बीस गुना पारद एवं मनिफेन (Magnesium) के चालीस गुना पारद, लिंग निर्माण के लिए परम आवश्यक है। इस प्रकार कम से कम सत्तर प्रतिशत पारा, पंद्रह प्रतिशत मणि फेन या मेगनीसियम तथा दस प्रतिशत कज्जल या कार्बन तथा पांच प्रतिशत अंगमेवा या पोटैसियम कार्बोनेट होना चाहिए। ऐसे पारद शिवलिंग को आप केवल बिना पूजा के अपने घर में रख सकते हैं। यदि आप चाहें तो इसकी पूजा कर सकते हैं, किन्तु यदि अभिषेक करना हो तो उसके बाद इस शिवलिंग को पूजा के बाद घर से बाहर कम से कम चालीस हाथ की दूरी पर होना चाहिए। अन्यथा इसके विकिरण का दुष्प्रभाव समूचे घर परिवार को प्रभावित करेगा। किन्तु यदि रोज ही नियमित रूप से अभिषेक करना हो तो इसे घर में स्थायी रूप से रखा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति बहुत बड़े तपोनिष्ठ उद्भात्त विद्वान होते है। यह साधारण जन के लिए संभव नहीं है, अतः यदि घर में रखना हो तो उसका अभिषेक न करें।
पारद शिवलिंग यदि कोई अति विश्वसनीय व्यक्ति बनाने वाला हो तो उससे आदेश या विनय करके बनवाया जा सकता है। वैसे भी इसका परीक्षण किया जा सकता है। यदि इस शिवलिंग को अमोनियम हाईड्राक्साइड से स्पर्श कराया जाय तो कोई दुर्गन्ध नहीं निकलेगा, किन्तु पोटैसियम क्लोरेट से स्पर्श कराया जाय तो बदबू निकलने लगेगी। यही नहीं पारद शिव लिंग को कभी भी सोने से स्पर्श न करायें नहीं तो यह सोने को खा जाता है।
यद्यपि पारद शिवलिंग एवं इसके साथ रखे जाने वाले दक्षिणा मूर्ती शंख की बहुत ही उच्च महत्ता बतायी गयी है। विविध धर्म ग्रंथो में इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है, किन्तु यदि इसके निर्माण की विश्वसनीयता पर तनिक भी संदेह हो तो इसका परित्याग ही सर्वथा अच्छा है। अतः सामान्य रूप से बाज़ार में मिलाने वाले पारद शिवलिंग के नाम पर कोई शिवलिंग तब तक न खरीदें जब तक आप उसकी शुद्धता पर आश्वस्त न हो जाएँ।
अब पार्थिव पारद शिवलिंग के निर्माण के तत्वों एवं उसकी प्रक्रिया के बारे में विवेचन-
अबरताल-
इसका अंग्रेजी या वैज्ञानिक नाम आर्सेनिक है। यह एक प्रकार का विष भी है, किन्तु पारे के मिश्रण से यह एक बहुत ही शक्तिशाली विषघ्न भी बन जाता है। पारे के साथ यह बहुत ही आसानी से घुल मिल जाता है, तथा बहुत ही शीघ्र पारा ठोस रूप धारण कर लेता है। कहा भी गया है कि-
पार्थिव पारदो लिंगम श्नोश्रेयमभिशंसितम।
अर्थात अबरताल के संयोग से बना शिवलिंग सर्वपाप ह़र होता है। किन्तु आर्सेनिक को प्राकृतिक अवस्था में ही होना चाहिए, अन्यथा शोधित आर्सेनिक लवणीकृत (आक्सी डेनटीफायिड) हो जाता है, जो हानिकारक होता है। यदि आर्सेनिक का कणीय अयन १२२:२२०० का हो तों ऐसे आर्सेनिक का पारे के साथ संयोग सर्वोत्तम माना जाता है। ऐसे शिवलिंग का वजन तीन छटाक से किसी भी हालत में ज्यादा नहीं होना चाहिए।
मृगालक-
इसे अंग्रेजी या विज्ञान क़ी भाषा में फास्फोरस कहते हैं। फास्फोरस एक अति शीघ्र ज्वलन शील पदार्थ होता है, किन्तु प्राकृतिक अवस्था में यह सुषुप्त होता है और पारद के साथ यह थोड़ी कठिनाई से मिलता है। इसीलिए इसमें हाडकेशर या जिल्कोनाईट मिला दिया जाता है। मृगालक के साथ पारद शिवलिंग बनाना थोड़ा कठिन होता है, क्योकि इसे पिघलाने में विस्फोट का भय ज्यादा होता है। शास्त्रों में इसे त्रिताप ह़र कहा गया है-
विनश्यते त्रयो तापा मृग लिंगम परिपासते।
पारद शिवलिंग के लिये मृगालक का कणीय अयन ९८८:४५३ होना चाहिए। इस शिवलिंग का वजन किसी भी अवस्था में एक पाँव से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
अपन्हुत-
इसका दूसरा नाम तूतफेन भी है। इसका अंग्रेजी नाम क्युप्रिकमेटासाईड है। यह पारद शिवलिंग का सबसे उत्कृष्ट स्वरुप है। जिस घर में इस लिंग क़ी पूजा होगी वहां कलिकाल अपना कोई भी प्रभाव नहीं ड़ाल सकता है। पारद शिवलिंग निर्माण में अपन्हुत का कणीय अयन २४००:३६०० का होना चाहिए। इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है। पौराणिक कथन के अनुसार लंका में रावण ने पांच सहस्र प्रस्थ वजन का शिवलिंग विश्वकर्मा से बनवाया था। एक प्रस्थ में पांच किलो होता है। यही कारण है कि लंका एक अभेद्य दुर्ग बन गया था।
जिरायत-
इसका एक नाम पहाडी सुहागा भी है। अंग्रेजी में इसे ट्राईडेनियम कहते हैं। यह बहुत ही आसानी से बन जाता है। कारण यह है कि यह बहुत हलके ताप पर भी पारा में मिल जाता है। इसे अक्सर लोग घरो में शौकिया तौर पर रखते है। इसका न तों कोई लाभ है और न ही कोई हानि। यह बहुत ही चमकीला होता है। किन्तु पानी के संयोग होने से यह शिवलिंग एक बदबूदार गंध उत्पन्न करता है। अतः इसे पूजा करने के लिये नहीं रखा जाता है। इसे शीशे के मर्तबान में रखना चाहिए। खुले में इसे नहीं रखना चाहिए। ज्यादा आर्द्र स्थान पर इसे नहीं रखना चाहिए। यह एक अति तीव्र हींग शोधक पदार्थ भी है।
वज्रदंती-
यह अभ्रक या Ore का अशुद्ध रूप है। यह शिवलिंग बहुत कठिनाई से बनता है। वर्त्तमान समय में यह शिवलिंग बनवाना बहुत ही महँगा है। कारण यह है कि वज्रदंती आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अति प्रतिबंधित या सुरक्षित धातु हो गयी है। सरकार क़ी अनुमति से ही इसे खरीदा जाता है। इसका कणीय अयन २३:१२ का होना चाहिए। इसका वजन घर के प्रयोग के लिये दो छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए। बाहर स्थापना के लिये इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है।
पुराणों में कहा गया है कि जब इन्द्र भगवान राक्षसो से पराजित होकर स्वर्ग से निकाल दिये गये तो उनकी पत्नी शची ने माता कालिका से इस विपदा के निवारण का उपाय पूछा। माता कालिका ने कहा कि हे इन्द्रानी यदि तुम पृथ्वी पर किसी भी तीर्थक्षेत्र में वज्रदंती पारद शिवलिंग क़ी स्थापना कर दो तो राक्षस बिना किसी युद्ध के स्वयं ही भयभीत होकर स्वर्ग छोड़ कर पाताल में भाग जायेगें। तब इन्द्रानी ने भगवान त्वष्टा से विनय कर के वज्रदंती के पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था। तथा उसे प्रभास क्षेत्र में स्थापित किया था। जिसके प्रभाव से राक्षस स्वर्ग छोड़ कर पलायित हो गये थे।
कज्जल-
यह एक प्रकार का ठोस कालिख होता है। इसे नौसादर एवं एवं तूतिया जलाकर बनाते हैं। इसे अंग्रेजी में जिंककार्बेट कहते हैं। इस शिवलिंग का प्रयोग तांत्रिक काम के लिये ज्यादा करते हैं। यह एक अति प्रचलित पारद शिवलिंग का रूप है। इसके निर्माण में कम से कम ७० हिस्सा पारा एवं ३० हिस्सा काज़ल होना चाहिए। काज़ल बहुत ही आसानी से पारा में मिल जाता है।
यह बना बनाया बाजार में जहां तहाँ मिल जाता है, किन्तु उसमें पारा बहुत ही कम होता है। प्रायः देखने में आया है कि ऐसे शिवलिंग में पारा मात्र १० प्रतिशत ही होता है। इसमें कज्जल का कणीय अयन १९०:३० का होना चाहिए। इसका वजन तीन छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
महाराज बलि ने भगवान विष्णु क़ी आज्ञा से पाताल में एक करोड़ कज्जल पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था। राजा मुचुकुन्द ने अपने गुरु आचार्य अभिन्नदोह के आदेश से अनार्यगत या यायावर प्रदेश में अपनी ऊंचाई का कज्जल शिवलिंग बनवाया था, जो आज भी कावा या बगदाद में है। जहां मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग अपना सबसे पवित्र तीर्थ यात्रा ‘हज’ पूरी करते हैं।