क्या आपने कभी सोचा है कि शनिदेव को आखिर न्याय का देवता क्यों कहा जाता है? उनकी कठोर दृष्टि से हर कोई कांपता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे एक गहन तपस्या और भगवान शिव जी का एक अद्भुत वरदान है
यह कहानी है उस समय की जब देवों के देव महादेव की भक्ति में लीन शनिदेव ने घोर तपस्या का मार्ग अपनाया। उन्होंने अपनी सारी सुख-सुविधाएं त्याग दीं, जंगल में आसन जमाया और अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए अनवरत ध्यान किया। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि पूरा ब्रह्मांड उनकी साधना से हिल उठा। पेड़-पौधे, नदियां, पर्वत—सब शनिदेव की अटल निष्ठा के साक्षी बने। दिन, महीने, साल बीतते गए, लेकिन शनिदेव की तपस्या में कोई कमी नहीं आई।
अंततः, उनकी अटूट भक्ति और कठोर साधना से प्रसन्न होकर, स्वयं भगवान शिव कैलाश से अवतरित हुए! उनके मुखमंडल पर दिव्य तेज था और उनकी उपस्थिति से सारा वातावरण पवित्र हो उठा। शिव जी ने शनिदेव को अपनी भुजाओं में उठाया और प्रेम से कहा, “वत्स, तुम्हारी तपस्या अद्भुत है। तुमने मुझे प्रसन्न कर दिया है। माँगो, क्या वरदान चाहते हो?”
शनिदेव ने हाथ जोड़कर, नम्रतापूर्वक कहा, “हे प्रभु, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मुझे यह वरदान दें कि मैं सभी प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार फल दे सकूँ। चाहे कोई राजा हो या रंक, देवता हो या दानव, कोई भी मेरे न्याय से बच न पाए।”
भगवान शिव मुस्कुराए और बोले, “तथास्तु! आज से तुम नवग्रहों में प्रमुख स्थान प्राप्त करोगे। तुम्हें न्याय का देवता घोषित किया जाता है। अब से हर प्राणी को उसके कर्मों का फल तुम्हारे माध्यम से ही मिलेगा। तुम्हारी दृष्टि से कोई नहीं बच पाएगा, और यही न्याय की स्थापना होगी।”
और इस प्रकार, भगवान शिव के आशीर्वाद से शनिदेव को यह असीम शक्ति प्राप्त हुई। तभी से, शनिदेव को कर्मफल दाता और न्याय का देवता कहा जाता है। उनकी महिमा अपरंपार है और उनका न्याय अटल है।