श्रावणमास में यह सर्पशाप दोष शान्ति के लिए अत्यन्त प्रभावकारी है। एक जोड़ी धातु के बने सर्प पूजन करके किसी वेदपाठी विद्वान को दान देने से सर्पशाप दोष परिहार हो जाता है ।
सर्प शाप के कारण यदि सन्तान बाधा , बुरे स्वप्न, कार्यो में विघ्न हो तो सर्पसूक्त का 101 पाठ करके हवन करें । तत्पश्चात् गो दान करें या गो निष्क्रिय दक्षिणा देकर ब्राह्मणों से आशीर्वाद लें । इस विधि को करने से उत्तम सन्तान की प्राप्ति होती है ।
कौन करे?
१.नियमित रूप से साँपों के सपने देखना।
२.पूर्वजों का सपना.
३.बिना किसी वास्तविक कारण के हर काम में बाधाएँ आना
४.जीवन के हर क्षेत्र में असफलता।
५.हर समय अनचाहा डर.
६.साँप काटने का सपना.
७.शत्रु समस्याएँ
८.कुंडली में कालसर्प योग के कारण विवाह में देरी।
९.परिवार में झगड़ा.
🍁सर्पसूक्तम पाठ के लाभ
तो सर्प सूक्तम जीवन की कई समस्याओं का समाधान है। अगर कोई व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस दिव्य मंत्र का जाप करे और सर्प की पूजा करे तो निस्संदेह जीवन जादुई रूप से बदल जाएगा।
🚩सर्पसूक्त का पाठ कब और कैसे करें?
★नागपंचमी पर सर्प दोष या कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए ★इस दिव्य मंत्र का जाप करना अच्छा होता है।
★हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक पंचमी तिथि पर इसका पाठ अवश्य करें।
★यदि आप बहुत अधिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो सुबह और सोने से पहले 12 बार इसका जाप करें और बाधा मुक्त जीवन के लिए प्रार्थना करें।
★यदि कर्ज दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हो तो भी यह सर्प सूक्तम बहुत लाभकारी है।
★यदि किसी की जन्म कुंडली में राहु और केतु अशुभ हों तो यह बहुत लाभकारी है।
★यदि कोई व्यक्ति सावन माह में प्रतिदिन इस सर्पसूक्त का पाठ करता है तो निःसंदेह भगवान शिव की कृपा से उसका जीवन सुचारू हो जाएगा।
ध्यानम
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च प्रथिवी मनु ।
ये अंतिरिक्षे ये दिवि तेभ्यो: सर्पेभ्यो नमः ।।
#नागस्तुतिः!!
एतैत सर्पाः शिवकण्ठभूषा ।
लोकोपकाराय भुवं वहन्तः ॥
भुतैः समेता मणिभूषितांगा।
गृह्णीत पूजां परमं नमो वः ॥
कल्याणरुपं फणिराजमग्र्यं ।
नानाफणा मण्डलराज मानम् ॥
भक्त्यैकगम्यं जनताशरण्यं ।
यजाम्यहं नः स्वकुलाभिवृद्धयै ॥
🔥नवनाग स्तोत्रम्।।
अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् । सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः ।।
तस्मे विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्
॥ ब्रह्मलोकेषु ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदाः।।१।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः वासुकि प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥२।।
कद्रवे याश्च ये सर्पाः मातृभक्ति परायणा ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥३।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः तक्षका प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥४।।
सत्यलोकेषु ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिता ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ।।५।।
मलये चैव ये सर्पाः कर्कोटक प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥६।।
पृथिव्यांश्चैव ये सर्पाः ये साकेत वासिना ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥७।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पाः वंसुतिषु संच्छिता ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥८।।
ग्रामे वा यदि वा रण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥९।।
समुद्रतीरे ये सर्पाः सर्वाजलवासिनः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥१०।।
रसातलेषु ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥११।।