सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र, रहस्यमय और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है। यह श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है और इसका संबंध नागों (सर्पों) की पूजा, कुंडलिनी शक्ति, रक्षा-विधान, एवं शिवतत्त्व से गहराई से जुड़ा है।
1- नाग पंचमी का आध्यात्मिक महत्व
(1) नाग = शक्ति व कुंडलिनी तत्त्व का प्रतीक
* सर्प हमारे भीतर स्थित, कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में रहती है।
* नाग पंचमी पर नाग की पूजा, वस्तुतः कुंडलिनी जागरण की विनम्र याचना और उसके नियंत्रण का अभ्यास है।
(2) भगवान शिव और नाग
* भगवान शिव नागराज वासुकी को, अपने गले में धारण करते हैं।
* नाग पंचमी पर, शिव की पूजा के साथ नाग देवता की स्तुति, हमारे भीतर ऊर्जा संतुलन, भयमुक्ति और जीवन रक्षा का प्रतीक बनती है।
(3) अभय और रक्षण की भावना
* नाग पंचमी व्रत का प्रमुख उद्देश्य सर्प भय, नागदोष, कालसर्प योग, रोग-दोष, और गृह बाधाओं से मुक्ति पाना है।
(4) पितृ शांति और वंश वृद्धि
* नाग देवता भूमि और पूर्वजों से जुड़ी ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
* इस दिन नागों की पूजा से पितृदोष शांत होते हैं और वंश वृद्धि में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
2- नाग पंचमी पूजन विधान
(1) व्रत नियम ——
* प्रातः स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करें।
* संकल्प करें —- ” नाग देवता की कृपा व भय निवारण हेतु नाग पंचमी व्रत करता हूँ। “
* व्रतधारी सामान्यतः नवद्रव्य, तिल-तेल, लहसुन-प्याज, तथा भुना हुआ अन्न नहीं खाते।
(2) नाग पूजन विधि ——-
(क) घर में नाग पूजन —–
1- गोबर या हल्दी से नाग की आकृति बनाएं या नाग देवता की चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
2- दूध, कुशा जल, अक्षत, पुष्प, चंदन, दीप, और धूप से पूजन करें।
3- नाग पंचमी मंत्र जप करें —–
* ” नमः सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनुष्या ऊर्ध्वं ये दिवि तेभ्यः नमः “
* ” अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः॥
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥ “
* दूध का अर्घ्य नाग देवता को अर्पण करें।
(ख) शिवलिंग पर नाग पूजन (विशेष विधि) ——
* शिवलिंग पर नाग की चांदी या ताँबे की मूर्ति रखें।
* दूध व गंगाजल से अभिषेक करें।
* “ ॐ नमः शिवायर ” और “ ॐ नागाय नमः ” मंत्र का जाप करें।
(3 ) विशेष विधान या उपाय ——
उद्देश्य/ उपाय —–
(1) सर्प भय या सर्पदंश/ नाग मंत्र जप + दूध अर्पण।
(2) कालसर्प दोष/ शिवलिंग पर नाग मूर्ति चढ़ा कर रुद्राभिषेक।
(3) वंश वृद्धि/ नाग स्तुति + दूर्वा या सफ़ेद पुष्प अर्पण।
(4) कुंडलिनी जागरण/ चक्र ध्यान + नाग मंत्र ध्यान।
(5) पितृ दोष निवारण/ नाग देवता के साथ पितरों का तर्पण।
4- नाग पंचमी के लाभ ——
क्षेत्र/ लाभ ——-
(1) मानसिक/ भय, भ्रम, अकाल मृत्यु से रक्षा।
(2) शारीरिक/ चर्म रोग, विष विकार से मुक्ति।
(3) आध्यात्मिक/ कुंडलिनी शक्ति का साम्य।
(4) सांसारिक/ कालसर्प योग, वंश बाधा का निवारण।
——-: नाग मंत्र सूची :——–
यहाँ पर नाग पंचमी, सर्प भय निवारण, कालसर्प दोष शांति, कुंडलिनी जागरण, एवं नाग तत्त्व साधना हेतु उपयोगी और प्रभावशाली नाग मंत्रों की विस्तृत सूची दी गई है।
1- प्रमुख नाग मंत्र सूची (सार्थक उपयोग सहित)
श्रेणी/ मंत्र उपयोग या लाभ ——
(1) सर्वसामान्य नाग वंदना मंत्र —-
” नमः सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनुष्या ऊर्ध्वं ये दिवि तेभ्यः नमः। “
* ऋग्वेद का यह मंत्र नागों को सर्वत्र वंदन करता है।
* उपयोग —– सर्पदोष निवारण, सर्प भय से रक्षा।
(2) नव नाग नामावली मंत्र
“अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः॥
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥”
उपयोग ——
विष निवारण, कालसर्प दोष शांति, नाग शांति यज्ञ में अनिवार्य।
(3) कालसर्प दोष निवारण मंत्र ——
“ॐ ऐं ह्लीं क्लीं फट् तक्षकाय नमः”
* विशेष रूप से “ तक्षक नाग ” की कृपा प्राप्ति हेतु।
* उपयोग —– कालसर्प योग व राहु-केतु दोष शांति के लिए।
(4) सर्पदंश निवारण मंत्र (औषधमंत्र)
” ॐ नागराजाय नमः, विषहराय फट् फट् स्वाहा “
उपयोग ——-
सर्पदंश के आपातकाल में उच्चारण, आयुर्वेदिक उपचारों में साथ पढ़ा जाता है।
(5) नाग गायत्री मंत्र
” ॐ फणिनाथाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नागः प्रचोदयात्। “
* ध्यान और दीर्घकालिक नाग साधना हेतु।
* उपयोग —- कुंडलिनी जागरण साधकों के लिए विशेष।
(6) कुंडलिनी या योग शक्ति हेतु नाग बीज मंत्र
” ॐ क्षौं नागाय नमः “
* उपयोग ——-
* कुंडलिनी शक्ति की सुप्त अवस्था को जाग्रत करने हेतु।
* मूलाधार चक्र में ध्यान के साथ जप करें।
(7) शिव-नाग संयुक्त मंत्र
” ॐ नमः शिवाय नागेंद्रहाराय नमः “
* उपयोग ——
* शिव एवं उनके नागरूप सहचर वासुकी की कृपा के लिए।
* रुद्राभिषेक या नाग पंचमी पूजन के समय।
2- जप संख्या सुझाव ——
उद्देश्य/ जप संख्या
(1) सामान्य पूजन/ 11, 21 या 108 बार।
(2) कालसर्प दोष/ 5,000 से 11,000 बार (अनुष्ठान में)।
(3) कुंडलिनी ध्यान/ 108 प्रतिदिन (21+ दिन)।
(4) भय निवारण या रक्षा/ 7 बार + तिलक या अभिमंत्रित जल सेवन।
3- विशेष प्रयोग —— नाग पंचमी तिथि पर
(1) रात्रि में नाग मंत्र का जप कर।
(2) दूध, चावल, कुशा मिलाकर शिवलिंग या नाग प्रतिमा पर अर्पण करें।
(3) सर्प भय, पितृदोष, अकाल मृत्यु, राहु-केतु दोष का शमन होता है।