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जन्म कुंडली में D6 चार्ट (षष्ठ्यंश चार्ट) का विस्तृत विश्लेषण

जन्म कुंडली में D6 चार्ट क्या है?

     वैदिक ज्योतिष में D6 चार्ट, जिसे षष्ठ्यंश कुंडली (Shashtiamsha Chart) के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण वर्ग कुंडली (Divisional Chart) है। यह जन्म कुंडली (D1) का एक सूक्ष्म विभाजन है, जो राशि चक्र के प्रत्येक राशि को 6 भागों में विभाजित करता है। प्रत्येक भाग 5 डिग्री का होता है (क्योंकि एक राशि 30 डिग्री की होती है, और 30 ÷ 6 = 5 डिग्री)। यह चार्ट विशेष रूप से छठे भाव से संबंधित मामलों जैसे रोग, शत्रु, कर्ज, मुकदमेबाजी, और स्वास्थ्य पर केंद्रित होता है।

 

     D6 चार्ट का उपयोग व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं, संघर्षों, और चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह पिछले जन्मों के कर्मों और उनके वर्तमान जीवन पर प्रभाव को समझने में भी सहायता करता है, विशेष रूप से उन कर्मों का जो विपरीत परिस्थितियों को जन्म देते हैं।

 

D6 चार्ट के भेद

    वैदिक ज्योतिष में D6 चार्ट का कोई उप-विभाजन या “भेद” नहीं होता, जैसा कि कुछ अन्य चार्ट्स (जैसे D9 या D10) के संदर्भ में देखा जाता है। D6 एक एकल वर्ग कुंडली है, जो षष्ठ्यंश विभाजन पर आधारित है। हालाँकि, इसके विश्लेषण में विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं, जैसे:

 

ग्रहों की स्थिति के आधार पर: प्रत्येक ग्रह का D6 में बल और प्रभाव।

     लग्न और भाव विश्लेषण: D6 में लग्न और छठा भाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।

दशा और गोचर: ग्रहों की दशा और गोचर का D6 पर प्रभाव।

षष्ठेश का विश्लेषण: छठे भाव के स्वामी (षष्ठेश) की स्थिति और प्रभाव।

इसके अतिरिक्त, कुछ ज्योतिषी D6 चार्ट को अन्य वर्ग कुंडलियों (जैसे D1, D9, D60) के साथ तुलनात्मक रूप से देखते हैं, लेकिन यह अपने आप में एक एकल चार्ट है।

 

D6 चार्ट का नाम D6 क्यों?

     D6 चार्ट का नाम “D6” इसलिए रखा गया क्योंकि यह राशि चक्र के प्रत्येक राशि को 6 भागों में विभाजित करता है। वैदिक ज्योतिष में वर्ग कुंडलियों को “D” (डिवीजनल) के साथ उनके विभाजन की संख्या के आधार पर नाम दिया जाता है। उदाहरण के लिए:

 

D1 (लग्न कुंडली): मूल जन्म कुंडली, बिना विभाजन।

D9 (नवमांश): प्रत्येक राशि को 9 भागों में विभाजित।

D6 (षष्ठ्यंश): प्रत्येक राशि को 6 भागों में विभाजित।

 

प्रत्येक राशि के 30 डिग्री को 6 भागों में बाँटने पर प्रत्येक भाग 5 डिग्री का होता है। इस विभाजन के आधार पर ग्रहों की स्थिति को D6 चार्ट में दर्शाया जाता है। यह नामकरण केवल गणितीय और तकनीकी सुविधा के लिए है।

 

D6 चार्ट का अर्थ और महत्व

     D6 चार्ट का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में छठे भाव से संबंधित विषयों का सूक्ष्म विश्लेषण करना है। छठा भाव वैदिक ज्योतिष में निम्नलिखित का प्रतिनिधित्व करता है:

 

रोग: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ।

शत्रु: बाहरी और आंतरिक विरोधी (जैसे ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा)।

कर्ज: वित्तीय दायित्व और उनके प्रभाव।

मुकदमेबाजी: कानूनी विवाद और संघर्ष।

नौकरी और सेवा: कार्यस्थल पर चुनौतियाँ और सहकर्मियों के साथ संबंध।

आत्म-अनुशासन और सेवा: निस्वार्थ सेवा और कर्तव्यनिष्ठा।

 

     D6 चार्ट इन सभी पहलुओं का गहराई से विश्लेषण करता है और यह बताता है कि व्यक्ति इन चुनौतियों से कैसे निपट सकता है। यह चार्ट पिछले जन्मों के कर्मों (प्रारब्ध) का भी संकेत देता है, जो वर्तमान जीवन में रोग या शत्रुता के रूप में प्रकट हो सकते हैं।

 

D6 चार्ट का फलित: सरल विधि और सूत्र

D6 चार्ट का फलित करने के लिए निम्नलिखित सरल विधियाँ और सूत्र उपयोगी हैं:

 

लग्न और षष्ठेश की स्थिति:

     D6 चार्ट में लग्न स्वामी (लग्नेश) और छठे भाव के स्वामी (षष्ठेश) की स्थिति देखें। यदि ये ग्रह शुभ राशियों में या उच्च के हैं, तो व्यक्ति रोगों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।

     यदि लग्नेश या षष्ठेश नीच, शत्रु राशि में, या पाप ग्रहों (शनि, राहु, केतु) के प्रभाव में हैं, तो स्वास्थ्य और संघर्षों में कठिनाई हो सकती है।

ग्रहों का बल (षड्बल):

      D6 में ग्रहों का बल (षड्बल) देखें। यदि कोई ग्रह D1 में उच्च का है, लेकिन D6 में नीच या कमजोर है, तो उसका शुभ प्रभाव कम हो जाता है।

    उदाहरण: यदि D1 में सूर्य उच्च का है, लेकिन D6 में कन्या (नीच) में है, तो व्यक्ति को प्रतिरोधक क्षमता में कमी या पेट से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं।

 

छठे भाव का विश्लेषण:

D6 में छठा भाव और उसमें स्थित ग्रहों का प्रभाव देखें। उदाहरण के लिए:

सूर्य: संघर्षशीलता और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

चंद्र: मानसिक तनाव या माता के स्वास्थ्य पर प्रभाव।

राहु: शत्रुओं पर विजय, लेकिन छिपे हुए रोग दे सकता है।

बृहस्पति: स्वास्थ्य और नैतिकता में सहायता।

 

दशा और गोचर:

     विंशोत्तरी दशा में छठे भाव से संबंधित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा के दौरान रोग, शत्रुता, या कर्ज की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

      गोचर में यदि शनि या राहु D6 के छठे भाव को प्रभावित करते हैं, तो उस समय विशेष सावधानी बरतें।

 

उपाय:

यदि D6 में पाप प्रभाव है, तो मंत्र जप, दान, और पूजा जैसे उपाय करें। उदाहरण:

मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” (108 बार रोज़)।

दान: छठे भाव के स्वामी के रत्न या वस्तुओं का दान।

पूजा: हनुमान चालीसा का पाठ या विष्णु सहस्रनाम।

D6 चार्ट के प्रमुख घटक

D6 चार्ट के विश्लेषण में निम्नलिखित घटक महत्वपूर्ण हैं:

 

लग्न (Ascendant):

     D6 का लग्न व्यक्ति की रोगों और शत्रुओं से लड़ने की क्षमता को दर्शाता है। मजबूत लग्न (उच्च या मित्र राशि में) स्वास्थ्य और विजय का संकेत देता है।

 

षष्ठ भाव और षष्ठेश:

    छठा भाव D6 का मुख्य केंद्र है। इसमें स्थित ग्रह और षष्ठेश की स्थिति रोग और शत्रुता के प्रभाव को निर्धारित करती है।

 

ग्रहों की स्थिति:

    शुभ ग्रह (बृहस्पति, शुक्र, बुध) छठे भाव में होने पर रोगों से रक्षा करते हैं, जबकि पाप ग्रह (शनि, राहु, केतु) चुनौतियाँ बढ़ा सकते हैं।

 

उदाहरण: D6 में राहु छठे भाव में होने पर व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है, लेकिन मानसिक तनाव या छिपे रोग हो सकते हैं।

 

नवमांश (D9) के साथ तुलना:

     D6 को D9 के साथ तुलना करने से पिछले जन्मों के कर्म और उनके वर्तमान प्रभाव का पता चलता है। यदि D9 में ग्रह शक्तिशाली हैं, लेकिन D6 में कमजोर हैं, तो व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।

 

दशा और गोचर:

     D6 में ग्रहों की दशा और गोचर का प्रभाव विशेष रूप से स्वास्थ्य और कानूनी मामलों पर पड़ता है।

 

सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित

     सूर्य सिद्धांत वैदिक ज्योतिष का आधार है, जो खगोलीय गणनाओं पर आधारित है। D6 चार्ट की गणना में निम्नलिखित सिद्धांत और गणितीय प्रक्रिया शामिल है:

 

राशि का विभाजन:

प्रत्येक राशि (30 डिग्री) को 6 भागों में बाँटा जाता है, प्रत्येक भाग 5 डिग्री का।

उदाहरण: मेष राशि के लिए:

0°-5°: पहला षष्ठ्यंश

5°-10°: दूसरा षष्ठ्यंश

और इसी तरह आगे।

प्रत्येक षष्ठ्यंश को एक विशिष्ट राशि और स्वामी से जोड़ा जाता है।

ग्रहों की स्थिति:

ग्रह की डिग्री के आधार पर उसका षष्ठ्यंश निर्धारित होता है। उदाहरण:

यदि सूर्य मेष राशि में 12 डिग्री पर है, तो यह तीसरे षष्ठ्यंश (10°-15°) में होगा, और इसकी स्थिति D6 में तदनुसार बदलेगी।

गणना: ग्रह की डिग्री को 5 से भाग दें, और शेष के आधार पर राशि निर्धारित करें।

 

खगोलीय गणित:

      सूर्य सिद्धांत के अनुसार, ग्रहों की स्थिति सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर निर्धारित की जाती है। D6 में ग्रहों की स्थिति को नक्षत्रों और उनके अंशों के आधार पर परिशुद्धता के साथ गणना की जाती है।

 

उदाहरण: यदि सूर्य 12° मेष में है, तो यह भरणी नक्षत्र (13°20′-26°40′) के प्रथम चरण में होगा। D6 में इसकी स्थिति तीसरे षष्ठ्यंश के आधार पर होगी।

 

वैज्ञानिकता:

       D6 चार्ट की गणना पूरी तरह से गणितीय और खगोलीय है, जो ग्रहों की सटीक स्थिति पर आधारित है। यह आधुनिक सॉफ्टवेयर (जैसे ज्योतिष सॉफ्टवेयर) द्वारा आसानी से गणना की जा सकती है।

 

      वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, D6 चार्ट मानव जीवन में तनाव और स्वास्थ्य समस्याओं को समझने में मदद करता है, जो आधुनिक मनोविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान से भी संबंधित हो सकता है। उदाहरण के लिए, छठा भाव मानसिक तनाव और प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा है, जो तनाव-संबंधी बीमारियों (जैसे उच्च रक्तचाप) से संबंधित हो सकता है।

 

पौराणिक कथा और D6 चार्ट

      वैदिक ज्योतिष में छठे भाव और D6 चार्ट को समझने के लिए पौराणिक कथाएँ महत्वपूर्ण हैं। छठा भाव शत्रु और रोग से संबंधित है, और इसकी एक पौराणिक कथा हनुमान जी और शत्रुओं पर विजय से जोड़ी जा सकती है।

 

कथा:

 

      रामायण में, जब रावण की सेना ने लंका में श्री राम और उनकी सेना को घेर लिया था, तब हनुमान जी ने अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता से शत्रुओं का सामना किया। हनुमान जी का बल और आत्म-अनुशासन छठे भाव का प्रतीक है। हनुमान चालीसा में निम्नलिखित श्लोक इस शक्ति को दर्शाता है:

 

श्लोक:

 

“नासै रोग हरै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।”

 

(अर्थ: हनुमान जी के स्मरण से सभी रोग और पीड़ा नष्ट हो जाती है।)

 

      यह श्लोक D6 चार्ट के रोग-निवारण और शत्रु-विजय के पहलू को दर्शाता है। हनुमान जी की भक्ति और शक्ति D6 में छठे भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने में सहायक मानी जाती है।

 

मंत्र:

 

D6 चार्ट में छठे भाव के दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित मंत्र उपयोगी है:

 

“ॐ हं हनुमते नमः” (108 बार जप करें, विशेष रूप से मंगलवार को)।

 

D6 चार्ट का विस्तृत विश्लेषण: उदाहरण

मान लीजिए, किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली (D1) में निम्नलिखित स्थिति है:

 

लग्न: मेष

सूर्य: मेष में 12 डिग्री

चंद्र: कन्या में 20 डिग्री

षष्ठेश (मंगल): वृश्चिक में (स्वराशि)

D6 चार्ट की गणना:

 

सूर्य (12° मेष): 12 ÷ 5 = 2.4, अर्थात् तीसरा षष्ठ्यंश। मेष का तीसरा षष्ठ्यंश मिथुन राशि में होगा।

चंद्र (20° कन्या): 20 ÷ 5 = 4, अर्थात् पाँचवाँ षष्ठ्यंश। कन्या का पाँचवाँ षष्ठ्यंश तुला राशि में होगा।

मंगल (वृश्चिक): स्वराशि में होने के कारण D6 में भी शक्तिशाली रहेगा।

 

विश्लेषण:

 

     D6 में सूर्य मिथुन में होने से व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी, लेकिन मानसिक तनाव हो सकता है (मिथुन का संबंध बुध और तंत्रिका तंत्र से)।

चंद्र तुला में होने से मानसिक स्वास्थ्य स्थिर रहेगा, लेकिन माता के स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा।

 

     मंगल की शक्ति के कारण व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेगा और कानूनी मामलों में सफलता मिलेगी।

फलित:

 

      इस व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याएँ कम होंगी, लेकिन तनाव और कार्यस्थल पर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। हनुमान चालीसा का पाठ और मंगल के लिए मूंगा धारण करना लाभकारी होगा।

 

     D6 चार्ट वैदिक ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो रोग, शत्रु, कर्ज, और संघर्षों का सूक्ष्म विश्लेषण करता है। यह चार्ट सूर्य सिद्धांत और खगोलीय गणित पर आधारित है, और इसकी गणना राशि के 6 भागों में विभाजन के आधार पर की जाती है। D6 का नाम इसके 6-भागों वाले विभाजन के कारण है। इसके प्रमुख घटक जैसे लग्न, षष्ठेश, और ग्रहों की स्थिति जीवन की चुनौतियों को समझने में सहायक हैं। पौराणिक कथाएँ, जैसे हनुमान जी की कहानी, और मंत्र जैसे “ॐ हं हनुमते नमः” D6 के दोषों को दूर करने में सहायता करते हैं।

 

उदाहरण और श्लोकों के माध्यम से यह स्पष्ट है कि D6 चार्ट न केवल ज्योतिषीय गणना बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और संघर्षों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।

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