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विश्व सहकारिता दिवस

विश्व सहकारिता दिवस (World Cooperative Day) हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाता है। यह दिवस वैश्विक स्तर पर सहकारिता आंदोलन (Cooperative Movement) की भूमिका और महत्त्व को रेखांकित करता है। सहकारिता का सिद्धांत “सभी के लिए एक और एक के लिए सभी” पर आधारित होता है, जो आर्थिक और सामाजिक विकास में भागीदारी, समानता और सामूहिकता को बढ़ावा देता है।

2025 में यह दिवस 5 जुलाई को मनाया जा रहा है, और इसका उद्देश्य है लोगों को सहकारिता के लाभों, मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति जागरूक करना।

सहकारिता क्या है?

सहकारिता एक ऐसा संगठनात्मक ढाँचा है जिसमें सदस्य मिलकर किसी आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। यह एक लोकतांत्रिक संस्था होती है, जहाँ “एक सदस्य, एक मत” का सिद्धांत लागू होता है। इसका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं, बल्कि अपने सदस्यों की भलाई सुनिश्चित करना होता है।

उदाहरण के तौर पर—दुग्ध सहकारी समितियाँ, ग्रामीण बैंक, कृषि विपणन मंडियाँ, श्रमिक उत्पादक संगठन आदि।

विश्व सहकारिता दिवस का इतिहास

सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 19वीं शताब्दी में इंग्लैंड के रोचडेल (Rochdale) में हुई थी। 1844 में रोचडेल के 28 बुनकरों ने मिलकर पहला सहकारी समाज बनाया। उनकी कार्यशैली और सिद्धांतों को बाद में पूरी दुनिया में अपनाया गया।

1923 में इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस (ICA) ने पहली बार विश्व सहकारिता दिवस मनाने की शुरुआत की। बाद में यह तय हुआ कि इसे हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 1995 में इसके 100 वर्ष पूर्ण होने पर सहकारिता को स्थायी विकास का एक प्रमुख स्तंभ माना।

2025 की थीम

हर साल विश्व सहकारिता दिवस की एक थीम (विषयवस्तु) होती है।
2025 की थीम (कल्पनात्मक):
“Cooperatives: Building a Sustainable and Equitable Future”
हिन्दी अनुवाद:
सहकारिता: एक टिकाऊ और समतामूलक भविष्य का निर्माण”

इस थीम का उद्देश्य है कि सहकारिता मॉडल के माध्यम से सामाजिक समानता, पर्यावरणीय संतुलन और आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाए।

सहकारिता के प्रमुख सिद्धांत

सहकारिता का संचालन निम्नलिखित 7 अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों पर होता है:

  1. स्वैच्छिक और खुली सदस्यता
  2. लोकतांत्रिक नियंत्रण
  3. सदस्य आर्थिक भागीदारी
  4. स्वायत्तता और स्वतंत्रता
  5. शिक्षा, प्रशिक्षण और सूचना का प्रचार
  6. सहकारिता के बीच सहयोग
  7. समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता

भारत में सहकारिता आंदोलन

भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 1904 में सहकारी ऋण समिति अधिनियम से हुई। इसके बाद 1912 और फिर स्वतंत्रता के बाद कई महत्वपूर्ण सुधार और संस्थाएँ अस्तित्व में आईं।

भारत में सहकारी संस्थाएँ ग्रामीण विकास, कृषि, पशुपालन, बैंकों, विपणन और कुटीर उद्योग जैसे क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा रही हैं।

प्रमुख सहकारी संस्थाएँ:

  • अमूल डेयरी (Amul) – दुग्ध उत्पादन में
  • इफको (IFFCO) – उर्वरक उत्पादन
  • कृभको (KRIBHCO) – कृषि क्षेत्र में
  • अपेक्स बैंक – ग्रामीण वित्तीय समावेशन में

भारत सरकार ने 2021 में सहकारिता मंत्रालय (Ministry of Cooperation) की स्थापना की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सहकारिता को लेकर भारत सरकार गंभीर है।

सहकारिता के लाभ

  1. सामाजिक न्याय और समानता: सभी सदस्यों को समान अधिकार और अवसर मिलता है।
  2. आर्थिक सशक्तिकरण: छोटे किसानों, मजदूरों और उपभोक्ताओं को आर्थिक मजबूती मिलती है।
  3. स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग: गाँव-गाँव में स्थानीय जरूरतों के हिसाब से कार्य होते हैं।
  4. रोज़गार के अवसर: सहकारी समितियाँ युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रदान करती हैं।
  5. शिक्षा और जागरूकता: सहकारिता लोगों को निर्णय लेने, नेतृत्व करने और जागरूक बनने का अवसर देती है।

चुनौतियाँ

हालाँकि सहकारिता आंदोलन ने बहुत कुछ हासिल किया है, फिर भी इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं:

  • राजनीतिक हस्तक्षेप
  • भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी
  • कमजोर प्रबंधन
  • तकनीकी सशक्तिकरण की कमी
  • युवाओं की भागीदारी में कमी

इन समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब सहकारिता को आधुनिक तकनीक, ई-गवर्नेंस और पारदर्शिता के साथ जोड़ा जाए।

विश्व सहकारिता दिवस का महत्त्व

इस दिन सहकारी संस्थाएँ, सरकारें, शिक्षण संस्थान और नागरिक समाज मिलकर संगोष्ठियों, रैलियों, वेबिनार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से सहकारिता के प्रति जागरूकता फैलाते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि विकास का रास्ता केवल निजीकरण और लाभ पर आधारित नहीं हो सकता, बल्कि सामूहिक प्रयासों से ही टिकाऊ विकास संभव है।

निष्कर्ष

विश्व सहकारिता दिवस न केवल सहकारी संस्थाओं के योगदान का उत्सव है, बल्कि यह एक अवसर है आत्ममंथन का — कि कैसे हम एक अधिक न्यायपूर्ण, टिकाऊ और सहभागिता से भरा समाज बना सकते हैं। भारत जैसे देश में जहाँ सामाजिक विषमता, बेरोजगारी और गरीबी बड़ी समस्याएँ हैं, वहाँ सहकारिता एक मजबूत समाधान बन सकती है।

हमें ज़रूरत है सहकारिता को केवल सरकारी कार्यक्रम न मानकर, एक जन-आंदोलन के रूप में अपनाने की। तभी “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” का सपना साकार होगा।

जय सहकारिता! जय भारत!
सहयोग में ही शक्ति है।

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