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सोमवती अमावस्या: विशेष महत्व, पूजा विधि और धार्मिक मान्यताएँ

भारतीय संस्कृति में प्रत्येक तिथि, वार और पर्व का विशेष महत्व होता है। इन्हीं पावन तिथियों में से एक है सोमवती अमावस्या, जो तब आती है जब अमावस्या तिथि सोमवार के दिन पड़ती है। इस दिन को अत्यंत पुण्यदायक और फलदायी माना गया है। प्राचीन पुराणों, धार्मिक ग्रंथों और संत महात्माओं की वाणी में सोमवती अमावस्या की महिमा का उल्लेख मिलता है। यह दिन विशेष रूप से दान, व्रत और तपस्या के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

 

🌑 सोमवती अमावस्या क्या है?

 

अमावस्या यानी वह तिथि जब चंद्रमा पूर्णतः अदृश्य होता है। जब यह तिथि सोमवार के दिन आती है, तब इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। यह संयोजन बहुत शुभ और दुर्लभ माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह दिन विशेष पुण्य देने वाला होता है और इससे व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिलती है।

 

📜 धार्मिक महत्त्व और पुराणों में उल्लेख

 

पुराणों के अनुसार, सोमवार के दिन अमावस्या का आना अत्यंत शुभ माना गया है। इसे बड़े भाग्य से प्राप्त होने वाला संयोग बताया गया है। इस दिन नदियों में स्नान, तीर्थों की यात्रा, गोदान (गाय का दान), अन्नदान, वस्त्र दान, ब्राह्मण भोजन, पीपल की पूजा और व्रत करना अत्यधिक पुण्यदायक होता है। विशेष रूप से इस दिन मौन व्रत रखने का भी बहुत महत्व है। ऐसा करने से सहस्त्र गोदान के बराबर फल प्राप्त होता है।

🙏 भगवान शिव को समर्पित दिन

सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। अतः सोमवती अमावस्या के दिन शिव पूजन का विशेष महत्व होता है। महिलाएँ इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करके अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। यह दिन सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत प्रिय होता है।

🌳 पीपल की पूजा और परिक्रमा

इस दिन महिलाएँ पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि पीपल में त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—का वास होता है, लेकिन सोमवती अमावस्या पर विशेष रूप से शिवजी का वास माना जाता है। महिलाएँ पीपल के पेड़ की पूजा करके उसकी 108 बार परिक्रमा करती हैं। परिक्रमा करते समय कच्चा सूत या मौली लपेटा जाता है। साथ ही, जल, दूध, चावल, पुष्प, दीप और गुड़ अर्पित किया जाता है।

🧘‍♀️ मौन व्रत और ब्रह्मचर्य पालन

इस दिन मौन व्रत का विशेष महत्व है। मौन रहकर उपवास करने से आत्मिक शुद्धि होती है और साधक का मन एकाग्र होता है। जो व्यक्ति इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करता है और एकाग्र होकर भगवन्नाम का जाप करता है, उसे दिव्य फल प्राप्त होते हैं।

☀️ सूर्य-चंद्र संयोग का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय पक्ष

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सोमवती अमावस्या पर सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं और एक सीध में स्थित रहते हैं। यह खगोलीय स्थिति अत्यंत विशेष होती है और इसका प्रभाव व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा पर पड़ता है। यह योग साधना, तप और ध्यान के लिए सर्वोत्तम होता है।

📿 व्रत और पूजन विधि

सोमवती अमावस्या के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए, विशेषकर पवित्र नदियों में। यदि संभव हो तो गंगा स्नान का विशेष महत्व है। स्नान के बाद भगवान शिव, माता पार्वती, पीपल वृक्ष और तुलसी का पूजन किया जाता है।

पूजन सामग्री में शामिल होती हैं:

  • जल कलश
  • कच्चा दूध
  • गुड़, चावल, हल्दी
  • फूल, दीपक, अगरबत्ती
  • मौली या सूत
  • भगवान शिव का चित्र या शिवलिंग

पूजन के बाद व्रती को संकल्प लेकर दिनभर उपवास रखना चाहिए और हो सके तो मौन व्रत रखना चाहिए।

💑 विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष दिन

विवाहित स्त्रियाँ इस दिन पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत करती हैं। वे शिव-पार्वती की पूजा करके अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। पीपल की परिक्रमा और पूजा स्त्रियों के लिए विशेष फलदायक मानी जाती है।

🙌 दान का विशेष महत्व

सोमवती अमावस्या पर दान का अत्यंत महत्व है। इस दिन किए गए दान का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। निम्न वस्तुओं का दान करना विशेष शुभ माना गया है:

  • तिल, चावल, गुड़, अन्न
  • वस्त्र, कंबल
  • दक्षिणा
  • गाय, भूमि (यदि संभव हो)
  • तेल का दीपक जलाकर मंदिर या पीपल वृक्ष के नीचे रखना

🌌 लोक मान्यताएँ और कथा

लोककथाओं के अनुसार, एक ब्राह्मण की कन्या ने सोमवती अमावस्या के दिन व्रत और पूजा करके अपने पति की अकाल मृत्यु को टाल दिया था। तब से यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन गया।

🌟 आध्यात्मिक लाभ

  • आत्मशुद्धि और मन की एकाग्रता
  • वंश वृद्धि और संतति सुख
  • पितृ दोष से मुक्ति
  • पूर्वजों की आत्मा की शांति
  • मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में एक कदम

सोमवती अमावस्या एक अत्यंत पावन, पुण्यदायक और प्रभावशाली तिथि है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी होती है। इस दिन किए गए स्नान, दान, व्रत, पूजा और तप का फल सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक प्राप्त होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस दिव्य तिथि का लाभ उठाना चाहिए और श्रद्धा, भक्ति तथा नियमपूर्वक व्रत व पूजन करना चाहिए।

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