भाग्य का उदय हो, भाग्य हर तरह से जातक का साथ दे यह हर जातक की इच्छा होती है।आज बात करेंगे इसी विषय पर भाग्य का उदय विवाह के बाद किस तरह से होता है।जिन जातक/जातिका का भाग्य विवाह से जुड़ा होता है या विवाह होने के बाद तुरंत बाद हो जाता है वह जातक/जातक अपने जीवनसाथी के लिए विशेष रूप से सोभाग्यशाली होते है।
कुंडली का 7वां भाव विवाह, वैवाहिक जीवन और पति-पत्नी का है।9वां भाव भाग्य का होता है।जब ग्रहो की शुभ स्थिति से या विशेष रूप से शुभ ग्रहो के सहयोग से सप्तमेश- नवमेश आपस सम्बन्ध बनाते है साथ ही यह दोनी बली होते है तब विवाह के बाद ऐसे जातक/जातिकाओ का अच्छा भाग्योदय होता है ऐसा जातक अपने कार्य छेत्र में पहले से कई ज्यादा उन्नति करता है यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो विवाह समृद्ध परिवार और अपने से आर्थिक सामाजिक रूप से अच्छे घर में होता है यदि ऐसी जातिका नोकरी करती हो तो विवाह के बाद नोकरी में भी उन्नति होती है।7वां भाव जो विवाह और 9वां भाव जो भाग्य दोनों का आपसी सम्बन्ध यह दर्शाता है व्यक्ति का भाग्य उसके विवाह से जुड़ा है।
जिन जातक/जातिकाओ का विवाह भाग्य भाव(9वे भाव) से जुड़ा होता है तो इनका वैवाहिक जीवन भी अच्छा रहता है।इसके आलावा 7वे भाव से 10वे भाव का शुभ सम्बन्ध भी विवाह के बाद कार्य छेत्र में अच्छी उन्नति कराता है।यदि नवमेश(भाग्य) दशमेश(कार्य छेत्र) दोनी का एक साथ 7वे भाव या भावेश से शुभ स्थिति में सबंध हो जाने से विवाह के बाद प्रबल भाग्योदय होने के रास्ते खुल जाते है।इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखने वाली होती है कि यह सम्बन्ध ग्रहो के बीच नैसर्गिक रूप से भी शुभ और बली हो।इसके आलावा 7वे भाव या भावेश के साथ किसी राजयोग, शुभ योग का बनना अच्छे समृद्धशाली घर-परिवार में विवाह कराता है जो एक तरह से भाग्य का उदय ही है।
एक उदहारण अनुसार
जैसे मेष लग्न की कुंडली है इसमें 7वे भाव का स्वामी शुक्र होता है और 9वे भाव का स्वामी गुरु होता है दोनों ही बेहद शुभ ग्रह भी है इन दोनों का आपस में बली सम्बन्ध विवाह बाद कार्यछेत्र में उन्नति और भाग्य का उदय कराता है यदि ऐसी स्थिति में किसी शुभ अनुकूल ग्रह का सहयोग जैसे मेष लग्न में ही चोथे भाव(केंद्र भाव) के स्वामी चन्द्र का साथ च्र गुरु शुक्र को मिल जाए मतलब चन्द्र, गुरु शुक्र से सम्बन्ध बना ले तो सोने पर सुहाग वाली बात होती है क्योंकि एक तो यह गजकेसरी योग बनेगा+इन ग्रहो के बीच केंद्र त्रिकोण का सम्बन्ध बनेगा क्योंकि 4 और 7 भाव केंद्र है तो 9वां भाव त्रिकोण है।जिस कारण यह राजयोग 7वें भाव से बनने पर विवाह बाद विशेष उन्नति ऐसे जातक जातिका की होती है।
सप्तमेश नवमेश जो भी ग्रह बनते है वह ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभ और पापी नही होने चाहिए या पापी नही होने चाहिए जैसे वृष लग्न की कुंडली में सतमेष मंगल होता है जो एक क्रूर ग्रह है+ भाग्येश शनि होता है जो एक पापी ग्रह है और दोनों ही शत्रु ग्रह है साथ ही इन दोनों का सम्बन्ध शुभ फल दायक नह होता इस कारण से इस तरह से बनने वाला सप्तमेश नवमेश का सम्बन्ध किसी तरह भी भाग्योदय कारक नही होगा क्योंकि नैसर्गिक रूप से सम्बन्ध अनुकूल नही है ऐसी स्थिति वाली कुंडली में सप्तमेश के साथ कोई शुभ योग बन जाता है जो राजयोग आदि के सामान फल देने वाला हो तो यह भी विवाह के बाद उन्नति और सौभाग्य को बढ़ा देता है।