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हवन-यज्ञ क्यों ?

प्रतिदिन यज्ञ का लाभ पाने की युक्ति

 

🔸आज भी आपको देशी गाय के गोबर के कंडे व कोयले मिल सकते हैं। कभी-कभार उन्हें जलाकर जौ, तिल, घी, नारियल के टुकड़े एवं गूगल मिला के तैयार किया गया धूप कर दो तो बहुत सारे हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जायेंगे।

 

🔸जब आपको ध्यान, जप आदि करना हो तो थोड़ी देर पहले यह धूप करके फिर उस धूप से शुद्ध बने हुए वातावरण में प्राणायाम, ध्यान, जप करने बैठें तो बहुत ही लाभ होगा। किंतु धूप में भी अति न करें, नहीं तो गले में कुछ तकलीफ हो सकती है, अतः माप से करें।

 

🔸गौ-गोबर के कंडे के धुएँ से हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण जब कोई मर जाता है तो श्मशान-यात्रा में एक व्यक्ति मटकी में कंडों का धूआँ करते हुए चलता है ताकि मृतक के जीवाणु समाज में, वातावरण में न फैलें।

 

🔸आजकल परफ्यूम आदि से अगरबत्तियाँ बनती हैं। वे खुशबू तो देती हैं लेकिन उनमें प्रयुक्त रसायनों का हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

🔸एक तो मोटर-गाड़ियों के धुएँ का कुप्रभाव, दूसरा अगरबत्तियों के रसायनों का भी कुप्रभाव शरीर पर पड़ता है। ऐसी अगरबत्तियों की अपेक्षा सात्त्विक अगरबत्ती या धूपबत्ती मिल जाय तो ठीक है, नहीं तो कम-से-कम घी का थोड़ा धूप कर लिया करो।

 

सर्वोपरि यज्ञ कौन-सा ?

 

कीटाणुओं को मारना और शरीररूपी कीटाणुओं को अच्छा रखना उसीके पीछे वैज्ञानिकों की सारी भागदौड़ और उनका विज्ञान काम करता है।

 

हमारे ऋषियों ने कीटाणु मारने के लिए यज्ञ की खोज नहीं की है अपितु वातावरण, भाव तथा जन्म-मरण के चक्कर में डालनेवाले मलिन अंतःकरण को ठीक करके परमात्मप्राप्ति में यज्ञ को निमित्त बनाया है।

 

उन यज्ञों में भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि जपयज्ञ सर्वोपरि है। अग्नि में जौ, तिल होमना अच्छा है परंतु इससे भी श्रेष्ठ है गुरुमंत्र लेकर माला पर जप करना। उसको भगवान श्रीकृष्ण ने ‘जपयज्ञ’ कहा है।

भगवन्नाम जप में योग्य-अयोग्य का खयाल भी नहीं किया जाता। भगवन्नाम सारी अयोग्यताओं को हरकर प्राणियों के चित्त में छिपी हुई योग्यता जगा देता है। इसलिए जपयज्ञ सर्वोपरि यज्ञ माना गया।

 

भगवान कहते हैं: यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि…

‘सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ।’  (गीता : १०.२५)

 

यज्ञ करने में तो यजमान धूआँ सहे, विधि- विधान का पालन करे तब लाभ होता है। और उस समय तो अग्नि के सामने तपना पड़ता है, कालांतर में उसे सुख मिलता है लेकिन भगवन्नाम लेने से तो वर्तमान में ही सुख मिलता है और कालांतर में परमात्मा मिलता है।

 

सर्दियों की पुष्टिवर्धक खुराक

 सर्दियों की पुष्टिवर्धक खुराक बनाओ। काले तिल ले लो, थोडा गुड़ डाल के चिक्की बनाओ। १० ग्राम चिक्की चबा-चबा के खाओ, ज्यादा नहीं। इससे मसूड़े मजबूत होंगे, दाँत मजबूत होंगे, पेशाब- संबंधी तकलीफें नहीं होंगी और शरीर मजबूत व पुष्ट होगा।

(यह प्रयोग सर्दियों में सुबह खाली पेट करना लाभदायी होता है।)

 

ध्यान की महिमा

👉🏻 आज्ञाचक्र में ओंकार या गुरु का ध्यान करने से बुद्धि विकसित होती है और नाभि में ओंकार या गुरु का ध्यान करने से आरोग्य एवं रोग प्रतिकारक शक्ति विकसित होती है।

 

सुख-शांति व बरकत के उपाय

 तुलसी को रोज जल चढायें तथा गाय के घी का दीपक जलायें।

 सुबह बिल्वपत्र पर सफेद चंदन का तिलक लगाकर संकल्प करके शिवलिंग पर अर्पित करें तथा ह्र्द्यपुर्वक प्रार्थना करें।

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